रामायण की एक अनोखी चौपाई: भक्ति और प्रेरणा का संदेश
मनु जाहि राचेउ मिलहि सो वर सहज सुन्दर साँवरो।
करुणा निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो।
एहि भाँति गौरी आसिस सुनी सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानी पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली।
जो मनुष्य सच्चे और समर्पित हृदय से भगवान की शरण में आता है, वह निश्चित रूप से उस प्रभु से मिलन प्राप्त करता है, जो स्वाभाविक रूप से मनमोहक और सुंदर हैं।
वे करुणा के भंडार, ज्ञानी, और दयालु हैं, जो अपने भक्तों के प्रेम और भावनाओं को भलीभांति समझते हैं।
गौरी माँ (पार्वती) के इस आशीर्वाद को सुनकर, सीता जी और उनकी सहेलियों के हृदय में अत्यंत आनंद उत्पन्न हुआ।
तुलसीदास जी कहते हैं, हर्षित मन से सीता जी ने भवानी माँ (पार्वती) की बार-बार पूजा की और फिर मंदिर से आनंदपूर्वक लौट गईं।
यह चौपाई का महत्व
यह चौपाई गहन भक्ति को दर्शाती है और भगवान राम के दिव्य गुणों को प्रकट करती है। साथ ही यह माँ पार्वती के सीता को दिए गए आशीर्वाद को व्यक्त करती है। यह चौपाई आध्यात्मिकता जगाने और पाठकों को रामायण की अमर कथा से जोड़ने के लिए एकदम उपयुक्त है।