उत्तरकाशी में आई बाढ़: तबाही का मंजर और सीख
उत्तरकाशी, उत्तराखंड का एक खूबसूरत लेकिन संवेदनशील पहाड़ी ज़िला, एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गया है। जुलाई 2025 में आई मूसलधार बारिश के चलते उत्तरकाशी जिले में भारी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह न केवल पर्यावरणीय असंतुलन की ओर संकेत करता है, बल्कि विकास की उन नीतियों पर भी सवाल उठाता है जो प्रकृति की अनदेखी कर बनाई जाती हैं।
बाढ़ की भयावह शुरुआत
जुलाई के अंतिम सप्ताह में उत्तरकाशी जिले में लगातार चार दिनों तक तेज़ बारिश हुई। इस दौरान भागीरथी, अस्सी गंगा और अन्य सहायक नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ गया। नदियों का उफान इस कदर था कि कई गांव जलमग्न हो गए, सड़कें टूट गईं, पुल बह गए और संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई।
सिर्फ उत्तरकाशी शहर ही नहीं, बल्कि डुंडा, भटवाड़ी, मनेरी, नेटवाड़ और पुरोला जैसे ब्लॉकों में भी बाढ़ और भूस्खलन ने जमकर तबाही मचाई। सड़कों पर मलबे का अंबार लग गया, और कई स्थानों पर यातायात पूरी तरह से रुक गया।
नुकसान का आकलन
उत्तरकाशी में आई बाढ़ ने जान-माल का भारी नुकसान पहुँचाया है। स्थानीय प्रशासन और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार:
- 20 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है, और कई अभी भी लापता हैं।
- 50 से अधिक मकान पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं, जबकि सैकड़ों घरों को आंशिक नुकसान पहुंचा है।
- 300 से अधिक लोग बेघर हो गए हैं, जिन्हें राहत शिविरों में रखा गया है।
- कृषि भूमि, सेब बागान और फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं।
- बिजली और पेयजल आपूर्ति कई क्षेत्रों में बाधित हो गई है।
- चारधाम यात्रा कुछ समय के लिए रोकनी पड़ी।
राहत और बचाव कार्य
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), और सेना की टुकड़ियाँ राहत कार्य में जुटी हुई हैं। हेलीकॉप्टरों और रेस्क्यू बोट्स की मदद से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जा रहा है। मलबे में फंसे लोगों को निकालने का काम अभी भी जारी है।
सरकार द्वारा राहत शिविरों में खाने-पीने, दवाइयों और कंबलों की व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री ने भी हालात का जायज़ा लिया और प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की।
बाढ़ के पीछे के कारण
हालाँकि भारी बारिश इसका सीधा कारण है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके पीछे कई मानवजनित कारण भी हैं:
- अनियंत्रित निर्माण कार्य
- वनों की कटाई
- नदी के किनारों पर अतिक्रमण
- जलवायु परिवर्तन
स्थानीय निवासियों की पीड़ा
उत्तरकाशी के ग्रामीणों के लिए यह सिर्फ एक बाढ़ नहीं, बल्कि जीवन भर की पूँजी खोने जैसा है। कई लोगों के घर, पशु और खेत बह गए हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए लोग संघर्ष कर रहे हैं। बुजुर्ग और महिलाएँ राहत शिविरों में परेशानियों का सामना कर रही हैं।
क्या किया जा सकता है?
- स्थायी विकास की योजना
- आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण
- सशक्त अर्ली वॉर्निंग सिस्टम
- नदी पुनरुद्धार योजना
- वन संरक्षण और वृक्षारोपण
निष्कर्ष
उत्तरकाशी में आई बाढ़ ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ का खामियाजा हमेशा आम जनता को भुगतना पड़ता है। यह समय केवल संवेदना जताने का नहीं, बल्कि सुधारात्मक कदम उठाने का है। जब तक हम विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन नहीं साधेंगे, तब तक ऐसी आपदाएँ बार-बार लौटकर आती रहेंगी।
उत्तरकाशी की यह त्रासदी हमें एक चेतावनी देती है—अगर अब भी नहीं चेते, तो भविष्य और भी भयावह हो सकता है।