मीडिया की नज़र से – हर ख़बर के पीछे की कहानी

7/18/2025 3:05:40 PM, aniket

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मीडिया की नज़र से – हर ख़बर के पीछे की कहानी

हर सुबह जब हम अख़बार खोलते हैं या टीवी पर "ब्रेकिंग न्यूज़" देखते हैं, तो हम वही देखते हैं — जो मीडिया हमें दिखाना चाहता है। लेकिन क्या वो पूरी सच्चाई होती है? या सिर्फ़ एक हिस्सा?
आज की दुनिया में, "मीडिया की नज़र से" देखना मतलब है एक फ़िल्टर से देखना — एक ऐसा फ़िल्टर जो कभी सच्चाई को उजागर करता है, तो कभी उसे छुपा देता है।

हर मुद्दा एक कहानी है – लेकिन किसकी?

जब किसान आंदोलन होता है, तो मीडिया उसे दो नजरों से दिखाता है:
एक तरफ़ — "देश के अन्नदाता न्याय के लिए सड़कों पर",
दूसरी तरफ़ — "कुछ लोग देश को अस्थिर करना चाहते हैं।"
तो सवाल ये उठता है — क्या मीडिया जनता की आवाज़ बन रही है, या किसी खास एजेंडे की?

टीआरपी की होड़ में गिरती साख

आज मीडिया की प्राथमिकता "ख़बर" नहीं, बल्कि "वायरल ख़बर" बन चुकी है।
राजनीति से ज़्यादा, किसी अभिनेता की शादी ज़्यादा कवरेज पाती है।
ग्रामीण क्षेत्र की समस्याएँ, बेरोज़गारी, शिक्षा की बदहाली — ये सब अक्सर हाशिए पर चले जाते हैं, क्योंकि ये "मनोरंजक" नहीं हैं।

सोशल मीडिया बनाम पारंपरिक मीडिया

अब "मीडिया की नज़र" सिर्फ टीवी चैनलों और अख़बारों तक सीमित नहीं है।
ट्विटर (X), इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर हर व्यक्ति रिपोर्टर है।
पर यहाँ भी सवाल वही — कौन सी नज़र सच्ची है, कौन सी भ्रम फैलाने वाली?

मीडिया की भूमिका: एक सवाल

क्या मीडिया अब भी जनमानस का प्रतिनिधि है?
या वह सत्ता, कॉर्पोरेट और राजनीतिक विचारधाराओं से संचालित हो रहा है?
एक निष्पक्ष मीडिया लोकतंत्र की रीढ़ होता है — पर जब वही रीढ़ झुकने लगे, तो सवाल उठाना ज़रूरी हो जाता है।

निष्कर्ष: दर्शक भी ज़िम्मेदार है

हमें सिर्फ मीडिया से सवाल नहीं करने चाहिए — हमें खुद से भी पूछना चाहिए:

  • हम क्या देखना चाहते हैं?
  • हम कैसी खबरों को बढ़ावा दे रहे हैं?
  • क्या हम जांचे-परखे बिना किसी खबर को सच मान लेते हैं?
“मीडिया की नज़र जितनी तेज़ है, उतनी ही ज़रूरी है हमारी नज़र भी – जो हर खबर के पीछे की नीयत को समझ सके।”

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