उत्तराखंड में आई भयावह बाढ़: प्रकृति का प्रकोप या मानवीय लापरवाही?
उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' कहा जाता है, अपने सुरम्य पर्वतों, पवित्र नदियों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। लेकिन 2025 की इस बारिश के मौसम में उत्तराखंड ने फिर एक बार प्राकृतिक आपदा का ऐसा दृश्य देखा जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ ने न केवल जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया, बल्कि कई परिवारों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
बाढ़ की भयावह तस्वीर
जुलाई के अंत से शुरू हुई भारी बारिश ने उत्तराखंड के कई जिलों—जैसे रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली, पौड़ी और पिथौरागढ़—में कहर बरपा दिया। जगह-जगह नदियां उफान पर आ गईं, पुल बह गए, सड़कें टूट गईं, और कई गांवों का संपर्क पूरी तरह से कट गया। गंगा, मंदाकिनी और अलकनंदा जैसी प्रमुख नदियों का जलस्तर चेतावनी की सीमा को पार कर गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सैकड़ों घर बह गए, दर्जनों लोग लापता हैं और अब तक दर्जनों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। अनेक तीर्थयात्री जो चारधाम यात्रा पर निकले थे, वे बीच रास्ते में फँस गए और राहत व बचाव कार्यों की प्रतीक्षा करने लगे।
प्राकृतिक कारण या मानवीय चूक?
हर साल उत्तराखंड इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बनता है, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या यह पूरी तरह से प्राकृतिक है? विशेषज्ञों की मानें तो लगातार हो रहे वनों की कटाई, अनियंत्रित निर्माण कार्य, नदियों के किनारे हो रहे अतिक्रमण, और पर्यावरणीय चेतावनियों की अनदेखी ने इस संकट को और अधिक भयावह बना दिया है।
हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का चौड़ीकरण, और अनियोजित शहरीकरण ने न केवल प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को बाधित किया है, बल्कि पर्वतों की स्थिरता को भी खतरे में डाल दिया है। ऐसे निर्माण कार्यों से भूस्खलन और बाढ़ की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
सरकार की तैयारियाँ और राहत कार्य
राज्य सरकार और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) के द्वारा राहत और बचाव कार्य तेजी से किए जा रहे हैं। हेलीकॉप्टरों के माध्यम से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जा रहा है। राहत शिविरों में भोजन, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक वस्तुएँ पहुँचाई जा रही हैं। लेकिन दुर्गम भौगोलिक स्थिति और निरंतर हो रही बारिश के कारण राहत कार्यों में कई बाधाएँ आ रही हैं।
कई जगहों पर स्थानीय लोग और स्वयंसेवी संस्थाएँ भी राहत कार्यों में जुटे हैं, जो एक सकारात्मक पहलू है। सोशल मीडिया के माध्यम से भी लोग मदद माँग रहे हैं और सहायता पहुँचाने की अपील कर रहे हैं।
आगे की राह: सतर्कता और सुधार की जरूरत
- पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन
- अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को मजबूत करना
- स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना
- वनों की कटाई पर रोक और पुनर्वनीकरण
- हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर पुनर्विचार
निष्कर्ष
उत्तराखंड में आई बाढ़ ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि हम प्रकृति के आगे कितने असहाय हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम कुछ कर ही नहीं सकते। हमें इस आपदा से सबक लेते हुए विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना होगा। उत्तराखंड केवल एक राज्य नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का प्रतीक है। इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।